बचपन में सुनता था माँ से
कि चिड़िया के बच्चे बड़े हो कर उड़ जाते हैं
लौट के उस आशियाने में, वो वापस नहीं आते हैं
आज जब बड़ी बिल्डिंग कि छोटी बालकनी से देखता हूँ
कभी कभी वो छोटा घर बहुत याद आता है
चहचहाते तो नहीं हम भाई बहन लड़ते थे जिसमे
वो छोटा सा आशियाँ याद आता है
कभी शिकायत थी नजदीकियों से,
आज इन् लम्बी दूरीओं से डर लगता है
कभी होते थे इतना पास कि छोटा भाई तंग करता था
या फिर वो बड़ा जो सदा चिड़ाता, मुझसे सदा ही लड़ता था
एक बहन भी थी प्यारी सी, आज सब वो जाने कहा है,
वो लड़ना झगड़ना वो फिर यूँ हि मिलना वो प्यार वो बचपन
वो सब जाने कहा है
उड़ गए पंछी सब, अब उस मकान के
अब वहां कोई नहीं लड़ता है
जाते हैं वहाँ त्योहारों में मेहमान बन कर
पर वहाँ कोई नहीं रहता है
इस बार सुना है एक पड़ोसी से
कि शायद एक चिड़िया ने वहाँ एक नया घोसला बनाया है
मुझे लगा जैसे मेरा वो बचपन लौट आया है
बचपन में सुनता था माँ से……
पुष्पेश सितम्बर १३ २००८
11 comments:
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
बहुत अच्छा लिखा है। स्वागत है आपका।
नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.
सराहनीय प्रयास. बहुत अच्छी रचना.
भाई स्वागत हैं आपका।
नए चिट्ठे का स्वागत है..खूब लिखें अच्छा लिखें
हिंदी दिवस पर हिंदी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है।
आगाज सचमुच शानदार है। अंजाम और भी जानदार हो, इसके लिए शुभकामनाएं।
achchi kavita.श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:
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ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बधाई कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें
बेहतरीन अभिव्यक्ति। बधाई।
बहोत ही सुंदर भावनाएं डाली है अच्छी और सुंदर यादों को सजाया है आने बहोत बधाई...
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