Wednesday, December 23, 2020

कौन कम्बखत कहता है कि इश्क़ मुकम्मल नहीं होता..........

 

कौन कम्बखत कहता है कि इश्क़ मुकम्मल नहीं होता

उस आशिक़ से पूछो जो रोज़ इश्क़ की पायदान पे चढ़ता है

रोज गिरता है गिर के उठता है ख्याल में हमसफ़र के अपने

रोज एक नया ख़्वाब का आशियाँ बुन इश्क़ में आगे बढ़ता है

 

रोज रोज जो ग़म के गर्त मैं गोते लगाए तो क्या ख़ाक इश्क़ किया

रोज रोज जो ग़म के गर्त मैं गोते लगाए तो क्या ख़ाक इश्क़ किया

इश्क़ तो सजदा है पीर का प्रेम है मीरा का या दीवानगी है खुसरो की

जब ये दुनिया वाले उन्हें समझ सके तो आप यार किनसे उम्मीद जगाये बैठे हैं

 

ये तो फन है उन दिलवालों का जो रोज टूटते जुड़ते सपनो में भी

ख्याल बुना करते हैं, जीते हैं लम्हे जो गुजरेंगे कभी, सोते हैं तो महबूब का दीदार कर

और फिर  सुबह उठकर उसी का अक्स देख उसका दामन थाम लेते हैं

जमाना उन्हें दीवाना कहता है और उसी तरह उनके बदइंतज़ाम करता है

 

फिर चाहे सूर का दोहा हो  मीरा का भजन या अमीर खुसरो की दीवानगी

जनाब आशिक़ी भी भला कभी इस दुनिया को गवार गुज़री है

चिनवा दिए गए कई इमारतों में तो कई दौलतों की भेंट चढ़े

जो निपटे उन्होंने ख्वाब बुने वो ख्वाबों की नगरी दौड़ चले

 

मेरा इश्क़ तुम्हारे लिए बेशकीमती था कीमत लग सकी उसकी

तो उसे सहेज के दिल की तिजोरी में बंद कर रख छोड़ा है

किसी कंजूस बनिए की तरह अपनी वो दौलत सहेज के रखता हूँ

जब भी गिनता हूँ उसे कभी अकेले महफूज तन्हाई में

हर बार बढ़ा हुआ ही पता हूँ खुश हो जाता हूँ ये देख

 

के दौलत कम नहीं हुई थोड़ी भी ,जब करो हिसाब ये बेहिसाब बढ़ती जाती है

रंग चढ़ सका दुनिया का जिस रंग पे, उस रंग से मैंने तेरी मोहब्बत को भिगो दिया है

सुना तो है पर कौन कम्बखत कहता है कि इश्क़ मुकम्मल नहीं होता

के देखो दुनिया आशिक़ की, कि किस ख़ूबसूरती से इसे मुकम्मल किया है


पुष्पेश पांडेय 

23 दिसंबर 2020 

Friday, November 6, 2020

इंजीनियरिंग क्या चुनी वक़्त मानो थम सा गया है.........

 एक कामयाब आशिक़: तुम साथ होती हो तो वक़्त ठहर सा जाता है


नाकामयाब आशिक़: तुम्हारे बिना मनो वक़्त थम सा गया है

आईटी इंजीनियर: इंजीनियरिंग क्या चुनी वक़्त मानो थम सा गया है, कॉलेज के साथ जिंदगी ने लेनी शुरू की, तब से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है


पुष्पेश पांडेय
6 नवंबर 2020

Wednesday, November 4, 2020

आस्तीन में साँप ....

 पाले हैं आस्तीन में साँप जाने कितने 

नरम खाल में ज़हरीले दाँत निपोड़े बैठे हैं 


पुष्पेश पांडेय 

नवंबर 11 2020 

Monday, April 20, 2020

आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं

आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं
एक ख्वाब को सहेज के बंद करने लॉकर में गया
खोला जो दरवाजा लॉकर का तो कुछ ख्वाब गिर पड़े

उन्हें सँभालने बैठा तो एक सिलसिला सा शुरू हो गया
जीवन की इस आपाधापी में कई लम्हे जो गुजर गए
वो सामने बिखरे पड़े  थे, गुजरे लम्हे जो गुजारे ही नहीं कभी

सिर्फ संजों के रख दिया था कि  फिर कभी जियेंगे
वो ख्वाब जो किसी जरूरत की नियामत चढ़ गए
कभी अपनी तो अक्सर चाहने वालों की चाह में आगे बढ़ गए

हम उन्हें लॉकर में सहेज के संभाल के बंद करते आये
सोचते थे कभी फुर्सत से इन्हे पढ़ेंगे  इन्हे उठाएंगे
एक एक कर फिर वही लम्हा जियेंगे और मुस्कुरायेंगे

आज वो तमाम ख्वाब और लम्हे सवाल पूछते हैं जिन्हे सहेज के रखा था
की वो लम्हा कब आएगा, कब इस कल की दौड़ को छोड़ तू आज पे आएगा
तू आज इस वक़्त पे मुस्कुराएगा, क्यू नहीं इसी पल से तू आज को अपनाएगा

सोच ही रहा था कि फ़ोन पे अगली मीटिंग का रिमाइंडर मुस्कुरा दिया
हमने फिर से उन ख्वाब और लम्हो को पुलिंदा उठाया और सहेज के लॉकर में सजा दिया
आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं

पुष्पेश पांडेय

Sunday, March 1, 2020

न गिला न शिक़वा न सवाल न ज़वाब

न गिला न शिक़वा न सवाल न ज़वाब
बस यूँ ही ख़ामोश हैं, डूबे हैं ख़ुद में थोड़े से
थोड़ी तन्हाई बटोर लाए हैं अपने हिस्से की
उसी की पैमाइश में मशरूफ़ हैं थोड़े से 

Thursday, January 30, 2020

जीवन क्या है एक दरिया बहता सा ......

जीवन क्या है
एक दरिया बहता सा
अनवरत समय की ढाल पे
कुछ यादें संजोये हुए
यादें कुछ बीते लम्हो की
या उन पलों की जो रुक से गए हैं
वक़्त जहाँ बढ़ता नहीं रुक सा गया है
समय की पदचाप थम सी गयी है
कुछ लम्हें जो जीते हैं अक्सर
बीते वक़्त की गहरायी में
वक़्त जहाँ रुक सा गया है
पर जीवन रुकता नहीं बहता रहता है
अनवरत समय की ढाल पे
कुछ यादें संजोये हुए

पुष्पेश पांडेय
30 जनवरी 2020