Saturday, April 12, 2025

पत्ता एक सुऩहरा सा

 समय की एक शाख पे लटका पत्ता एक सुऩहरा सा

जीवन की नई कोपलों को तकता वो पत्ता एक इकहरा सा


जीवन की इस आपाधापी में कितने संगी पृथक हुए

कुछ पवन की भेंट चढ़े कुछ सुनहरे बन बिखर गए


जिनको संग पाकर यौवन तेज हिलोरें खाता था

या जिन संगी साथियों संग अभिमान चरम पर जाता था


जीवन की इस अंतिम बेला में लटका निपट अकेला है

देख नई कोपलों का जीवन को वह पाता स्वयं को अकेला है


इंतज़ार में उस पवन के जो संग उड़ा ले जाएगी 

अगले पथ पर नये ज़ीवन की गति वही बनाएगी 


नयी राह के पथ को तकता देता जीवन्त मशवरा सा

समय की एक शाख पे लटका पत्ता एक सुऩहरा सा


पुष्पेश पांडेय

13 अप्रैल 2025






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