Sunday, March 24, 2013

यूँ ही टकरा गया आज उसी शायर से ........



फिर बैठे बैठे इत्तेफाक से यूँ ही टकरा गया आज उसी शायर से
जो किसी महखाने में शाम ढले मिल जाता हँसता मुस्कुराता, यूँ ही बैठा यारों में जाम टकराता

जाने क्यों गुम था वो भीड़ में  यूँ ही तनहा सा खड़ा एक जाम लिए
अक्सर कभी कुछ यूँ ही पगला दीवाना सा मालूम देता
मुस्कुराता और कभी ठहठहा कर हँसता फिर नम आंखों से चंद अश्क बहा करते

ठहठहा लगा के फिर कभी कोई बात दीवानी करता
या फिर किस्सा कोई पुराना छेड़  देता अपनी यादों के ताने बानों से
या जी जाता फिर कोई लम्हा यूँ ही सोच में डूबा पुरानी यादों के झरोखों से

साकी के दिए हर नए जाम के साथ ज्यों ज्यों नशा बड़ता जाता
बुनता जाता एक नया तानाबाना यादों का मिलकर ख्यालों से
जिया करतावो हर एक लम्हा भी जो हुआ ही नहीं, अपने ख्यालों की चित्रकारी से

फिर जब चड़ते आफ़ताब के संग नशा ये जिंदगी का सर से उतरता
रह जाता खामोश वीरान खड़ा भीड़  मैं यूँ ही तनहा
सवालों के जवाब ढूँढता, ख्वाबों और हकीकत से उलझता लड़ता बीती रात की खुमारी से

गुजार देता दिन  अपना इसी कशमकश में,ख्वाब, बीती याद और हकीकत ऐ जिंदगी की मशक्कत में
और फिर वो किसी महखाने में शाम ढले मिल जाता हँसता मुस्कुराता,   यूँ ही बैठा यारों में जाम टकराता


पुष्पेश पाण्डेय
March 25 2013