Tuesday, December 16, 2014

कसूर क्या था हमारा, खता क्या थी जो कर के ये सजा मिली

हम न तो हिन्दू थे न ही मुसलमान, जात पात को तो हमने इस उम्र में दूर हटा रखा था
नौं साल की मासूम उम्र में हमारी अम्मी ने अपने आँचल में हमें इन मजहबी रंगो से बचा रखा था

अब्बा स्कूटर न ले साइकिल से जाते थे, तो किसी के वालिद कार की जगह स्कूटर का शौक फरमाते थे
इंसान बन पाएं शायद हम, इस उम्मीद से हमें अच्छे स्कूल में पढ़ाते थे

कसूर  क्या था हमारा, खता क्या थी जो कर के ये  सजा मिली
 मारने वाले थे किस मजहब के, खुदा कौन था उनका जिससे उन्हें ये रज़ा मिली

उस एक धमाके और चंद गोलियों की आवाजों ने कई सपनों को  उजाड़ दिया
न हमारा मुल्क पूछा न ही मजहब, जाने कितनी माओं के अरमानों को जीते जी गाड़ दिया। ……

May the souls of all younger brothers and sisters rest in peace, who were killed yday in the massacre in Peshavar, Pakistan. RIP

पुष्पेश पाण्डेय
दिसंबर 17, 2014

Saturday, December 6, 2014

ईमानदारी कमरों में कहाँ .........

ईमानदारी कमरों में कहाँ .........
वो तो बंद पड़ी है पुराने जंग लगे सामान संग ग़राज़ों में
जहाँ नेक नियति और देशभक्ति सोती है जंग लगे मेज़ पर
और ईमानदारी ताला लगे दराजों में

पुष्पेश पाण्डेय
दिसंबर 7, 2014