Friday, March 21, 2014

अब वो मोर आसमान में सितारे चुगने नहीं आता...........

अब वो मोर आसमान में सितारे चुगने नहीं आता
बैठा रहता हूँ यूँ ही अक्सर सितारे तकते
गिनते कभी उन तारों को, यूँ ही तकते
और कभी यूँ ही सितारों में  यादों का तानाबाना बुनते
फिर  कभी उस चमकते से सितारों में तुम दिख जाते हो
और फिर बीती यादों का मंजर सा एक सामने दिख जाता है
उन यादों में अक्सर बीते हुए खुद को देखा करता हूँ
गुजरती रहती हैं यूँ ही कभी पूनम तो कभी अमावस की स्याह रातें
बिखरे रहते हैं सितारे आसमान में  यूँ ही
पर अब वो मोर आसमान में सितारे चुगने नहीं आता
सुनता था बचपन के किस्सों में कभी माँ से जिसे
वो सामने की मुंडेर पे बैठा मोर जो कभी
आसमान से मीठे सितारे चुगता था, अब वो पुराना जमाना नहीं आता
वो सितारे जो आसमान में यूँ बिखरे होते हैं मानो
कोई माला तुम्हारी मोतियों की बिखर गयी हो जैसे
और वो हर मोती सितारा बन यादों का तानाबाना कह रहा हो जैसे
कि परछाइयाँ हैं यहाँ कुछ बीते लम्हो की और तो कुछ नहीं
क्यूंकि अब कोई मोर आसमान में सितारे चुगने नहीं आता

पुष्पेश पाण्डेय 
मार्च 21, 2014