याद क्या है
दिन हैं कुछ बीते हुए
और वो लम्हा जो बीत गया
कुछ हसीं पल थे, और कुछ गम के साये
सब यादों के पुलिंदे में समेट के रखे हैं
कुछ धुंदली याद भी है, मेरी जब मैं भी हँसता था
फिर तुम्हे भुलाने बैठा तो खुद को ही मैं भूल गया
आज जब पुलिंदा यादों का खोलता हूँ तो एक धुन्द्ली सी शकल याद आती है
वो खिलखिलाता बचपन, वो कॉलेज की शरारत और वो एक हँसी याद आती है
खो गयी जो आज के कहकहों में, वो बोलती खामोशी आज इन महफिलों में
भीड़ में भी खुद को तनहा पाता हूँ
हँसता भी हूँ और रोता भी, उन यादों को जब याद किये जाता हूँ
यादें ही हैं अब और उन यादों का पुलिन्दा है
था मैं जो इंसान कभी वो आज उन यादों का एक वाशिंदा है.
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