Saturday, January 21, 2017

यूँ तो तेरी जुदाई का गम भी कुछ कम नहीं ....................


यूँ  तो तेरी जुदाई का गम भी कुछ कम नहीं 
टपकती है आँखों से दुआ बन के जो 
वो मेरी याद में दुपट्टा तेरा तो नम नहीं 
यादें जो लिपटी हैं चारों ओर माशूक बन कर 
तेरे होने का अहसास कराती तो कुछ कम नहीं 
ढूंढा करते हैं जिस एहसास को बीते वक़्त के सायों में 
तन्हाई में महसूस अक्सर होता वो एहसास तो कुछ कम नहीं 
मिलते हैं आज भी उसी दीवानगी से टीले पे जो 
तुम हम जैसे ही कोई होंगे क्या हुआ जो तुम हम नहीं 
वो सर्द हवा जो आज भी भिगो देती है पलकों का तकिया  
उन यादों के बिछोने में सोया जागा होगा तू 
वरना यूँ नींद में उठ बैठ जाते तो हम नहीं 
यूँ  तो तेरी जुदाई.............................

पुष्पेश पान्डेय
21 जनवरी 2017 

Friday, January 6, 2017

उस मकान में सुकून पसरा पड़ा है ..........................



जिन्दगी की इस भागमभाग भरी आपाधापी में
सोचता हूँ जब उन बीते लम्हों को एकाकी में
देखता हूँ जो रोज एक नया बनने की चाह
या चुनता हूँ वो एक नया रास्ता चुनने की राह
इन अनगिनत चाहतों में खुद को भुला बैठा हूँ
चाहतों की इस चाहत मैं जो था वो गवां बैठा हूँ

वो सुकून जो पास था उन छोटे से कमरों में
नहीं पास जो इन बड़ी बिल्डिंगों मीनारों में
सुकून जो मिलता था वो हीरो हौंडा चलाने में
आज खोया खोया सा है इन सिडान को दौड़ाने में
उस छोटी गली के ऊपरी मंजिल के उन छोटे कमरों में
यादें जो साझा करि हैं कई उन भीड़ भरे गलियारों में

उन भीड़ भरी गलियों में छुपते छुपाते निकल जाने का सुकून
उन ऊपरी कमरों में खुद को पा जाने का सुकून
छोड़ आये जिसे जिंदगी की दौड़ में उस मकान में
खो सा गया जो शहर की बड़ी बड़ी मीनारों में
ढूंढते हैं जिसे अक्सर तकते हम सितारों में

पसरा है आज तक उस मकान की मुंडेरों में
कैंटीन की चाय में और पावरहाउस की उन दलेरों में
उन छोटी छोटी सीढ़ियों में या उन पहाड़ियों में
पीर की दरगाह में या झील की अंगड़ाइयों में

सोचा है इस बरस उस मकान की एक ईंट उधार लाऊंगा
खो गया जा पसरा है जो, वो सुकून साथ लाऊंगा
वो मकान  जिसमे आज भी वो सुकून पसरा पड़ा है

पुष्पेश पाण्डेय
जनवरी 6, 2017