कल फिर चाँद से रात भर आँख मिचोली होती रही
वो मुँह चिढ़ाता रहा और आँखे दामन भिगोती रहीं
वो जन्मदिन याद है तुमको जब एक प्याली से चाय को पिया था
बारी बारी एक एक घूंट हमने जीवन अमृत को बाँट लिया था
वो जो तुम्हारे होठों की शोखी उस प्याली में कैद हुई थी
उसको अगली घूंट में मैंने जैसे खुद में भर लिया था
वो उस जन्मदिन की छोटी सी मुलाक़ात
उन लम्हो में की अनकहे लफ्जों की जाने कितनी बात
ऐसे छोटे बड़े जाने कितनी मुलाकातों के उपहार मैंने संजों रखे हैं
जीता हूँ उन्हें अक्सर, लम्हे जो यादों की तिजोरी मैं महफूज़ रखे हैं
यूँ तो सदा ही दुनिया ने जाने कितनी बंदिशें लगायी हैं
पर क्या कभी राधा और श्याम में विरह भी हो पायी है
आज भी नंदीवन में शाम को मानो मेला सा लग जाता है
जब हो शाम तो आकर श्याम राधा संग रास रचाता है
न श्याम बिन राधा, न बिना राधा हो श्याम पूरा
मैं तुम हम अधूरे एक दूजे बिन जीवन बहुत अधूरा
है विश्वास एक होंगे प्रेम में और रहेंगे संग अनंत
प्रेम बंधन की डोर में जो बँधे, इस रिश्ते का नहीं कोई अंत
वर्षों बीते विरह की चक्की पे पिस के कई परीक्षाओं से मुखर
साथ रहेंगे अब हम मिलेंगे अब इसी राह पर शेष जीवन अग्रसर
पुष्पेश पांडेय
16 april 2021