सुबह से थोड़ा मुस्कुरा क्या दिए हम
शाम आते आते खुद को खुद की नजर लगा बैठे
चिराग़ राहों में बिछाये थे मिलने के इंतज़ार के
शाम को वही चिराग़ दामन हमारा जला बैठे
न हो मायूस के मौक़े और भी आएंगे इश्क़ में
ये जिंदगी है इसे हमे तड़पाने में भी मजा आता होगा
दर्द भी मायूस हो जाता होगा हमे देख के
जब दर्द में हमे तेरी तस्वीर पे मुस्कुराता पाता होगा
सोचता होगा किस मिटटी से बनाया इन दोनों को
न मिटने वाली मुहब्बत की वो मिट्टी कहाँ ढूंढ पाता होगा
सुबह से थोड़ा मुस्कुरा क्या दिए हम
शाम आते आते खुद को खुद की नजर लगा बैठे .....
पुष्पेश पांडेय
16 फरवरी 2021
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