मुझसे पूछा न
करो याद करते
हैं गर तुमको
हम
याद आने के
लिए भुलाना भी
तो मुमकिन नहीं मुनासिब
भी नहीं
भूले ही कब थे जो याद करें तुमको हम
गर कोई लम्हा
जीना हो तो जी लेते
हैं उन बीते लम्हो को
ख्यालों में
अपनी ही दुनिया
के मीर हैं,
उस बस्ती में
आज भी हमारा
हुक्म चलता है
वक़्त की धूल
को रोक कर रखा है
उस जहाँ में
जाने से हमने
सो जो बीता
ही नहीं वो क्या कर
भूलेंगे और क्या याद करेंगे
मीर ने अपनी
ही दुनिया सजा
रख्खी है कभी आओ तो
सैर पे ले जायेंगे
वक़्त की लगाम
को थाम इस शहंशाही का लुत्फ़ तुमको
भी दिलवाएंगे
तुम जो आये
थे कभी न जाने की
कसम लेकर
आ कर देखो
आज तलक उस कसम को
हमने निभा रखा
है
वो लम्हा जो
वक़्त के बटुए से चुराया
था कभी
दरगाह की चादर
सा पाक उसी रौशनी से
सजा रखा है
मुझसे पूछा न
करो याद करते
हैं गर तुमको
हम..................
पुष्पेश पांडेय
4 फरवरी 2018
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