Friday, November 15, 2013

तुमने सोचा कि तुम्हारी जीत ने मेरी चीख को दबा दिया


जनम लिया तो लोगो की  आँखों से दिल में उतारी  गयी
कहीं गुड़िया कहीं लक्ष्मी और कहीं बिटिया कह के पुकारी गयी
कुछ घर वो भी थे जिन्होंने मुझे मनहूस का नाम दिया
या मेरी माँ को वंश दे सकने का ताना सुना दिया

मैं तो घर की बेटी थी जहाँ जनम लिया या ब्याही गयी उसी घर को अपना लिया
मानव जीवन की प्रतिस्पर्धा  और बड़ी तो मैंने भी हमसफ़र को अपना हाथ सहारे के लिए बड़ा दिया
घर कि चौखट से बाहर  कदम रखा और गर्व से सर ऊँचा कर विदेशों मैं भी नारी शक्ति का परचम लहरा दिया

पर ये व्यवस्था उन पुरुष प्रधान पंचों  से सही गयी
और समाज के शिष्टाचार  बंधन तोड़ने के लिए मैं ही दोषी कही गयी
यदि रात बेटा घर आये तो माँ का सीना चौड़ा हो जाता है
सबसे कहती बीटा जी तोड़ मेहनत  कर कमाई घर लाता है
परन्तु यदि यही मेहनत लड़की करे तो ये कहाँ समाज को भाता है
आज भी स्त्री का चरित्र उसके कपड़ो की लम्बाई से आंका जाता है

इस पर भी मैं रुकी तो पौरुष अभिमान में मद तथाकथित पुरुषों ने मेरा चीर ही हरा दिया
उन नपुंसक पुरुषों ने सोचा कि बाहुबल कि जीत ने मेरी चीख को दबा दिया
पर मैं वापस आउंगी दोगुनी ताकत से
मिटाऊंगी तुम्हारा दुराभिमानी अस्तित्व इस संसार रुपी वृक्ष कि शाखों से

मैं प्रकृति हूँ, मैं ही सृजन तो संहार भी मैं ही हूँ
इस संपूर्ण सृष्टीधारा का आधार भी मैं ही हूँ
जान लो कि हर घर में मैं ही माँ, मैं ही पुत्री, पुत्रवधू, शिष्टाचार, व्यवहार मैं ही हूँ
मत समझो मुझे बेबस यह चीख यदि बदले तो चंडी का अवतार मैं ही हूँ
असुर वध की थी जो गर्जना उस चंडी के अट्टाहास  मैं छुपा हाहाकार मैं ही हूँ

यदि फिर भी सोचते रहे कि तुम्हरी जीत ने मेरी चीख को दबा दिया
ये हो कि सृजन नहीं संहार का लेना पड़े रूप और फिर किसी चंडी कालका ने दुराभिमानी अस्तित्व को ही संसार से मिटा दिया

पुष्पेश पाण्डेय 
नवंबर 16, 2013

1 comment:

Anonymous said...

No matter how much a woman grows in terms of education, employment but her condition will always remain pathetic , deplorable in this male dominated society.