सुन रहा था ध्यान से ग़ज़ल बैठा, तो उसने पूछा
सुनते हो बड़े ध्यान से, ये ग़ज़ल क्या है
मैंने कहा,
अल्फाज़ हैं किसी शायर के लिखे
या तस्स्वुर है, ये मेरी जिंदगी का
एसी ही कुछ गज़लें मैंने अपनी यादों में सजायी हैं
सुनता हूँ तो लगता है, जैसे आइना देख रहा हूँ मैं
जिंदगी के कई पल उस शायर ने शब्दों में ढाल रखे हैं
जानता था वो क्या मेरे बारे में, कैसे इतना
या मेरी तरह वो भी गम का शौकीन था
या बना दिया था जिंदगी के हालात ने उसे
गमों का कुछ शौकीन यूँ मेरी तरह
अल्फाज नहीं हैं महज
दास्तान हैं इस जिंदगी की, उन ग़ज़लों में
वही गज़लें सजा के रखी हैं
वरना ग़ज़ल क्या है, अल्फाज़ हैं कुछ शायर के लिखे.....
पुष्पेश पाण्डेय, मार्च 29
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