जब तुम नहीं होते हो, जाने क्यों तुम्हारी याद बहुत आती है
सामने तो कह नहीं पाता बस एक खामोशी सी घर कर जाती है
याद करता हूँ उन लम्हों को जो साथ बिताये हैं हमने
सुना था किसी शायर से की याद उन्हें करते हैं जिन्हें भुलाया हो कभी
तुम्हे भूला तो नहीं पर याद फिर भी बहुत आते हो
जाने क्यों सामने कुछ कह नहीं पाता
पर अकेले में बातें बहुत करता हूँ
तुम नहीं होते तो अक्सर तुम्हारी तस्वीर को ही देखा करता हूँ
तुम आते ही क्यों हो जाने के लिए
कभी न जाने के लिये भी आया करो
और अगर जाना ही होता है तुमको
तो जाने के बाद याद तो न आया करो
सोचा न था कि तुम यूं जिंदगी में आओगे
यादों ही नहीं दिल में भी घर कर जाओगे
तुम नहीं होते तो याद आती है वो तस्वीर जो बचपन में देखी थी
कि बीच सागर में एक कश्ती अकेले चले जाती है
जब तुम नहीं होते हो, जाने क्यों तुम्हारी याद बहुत आती है
पुष्पेश, सितम्बर, 15 2008
Monday, September 15, 2008
Friday, September 12, 2008
बचपन में सुनता था माँ से……
बचपन में सुनता था माँ से
कि चिड़िया के बच्चे बड़े हो कर उड़ जाते हैं
लौट के उस आशियाने में, वो वापस नहीं आते हैं
आज जब बड़ी बिल्डिंग कि छोटी बालकनी से देखता हूँ
कभी कभी वो छोटा घर बहुत याद आता है
चहचहाते तो नहीं हम भाई बहन लड़ते थे जिसमे
वो छोटा सा आशियाँ याद आता है
कभी शिकायत थी नजदीकियों से,
आज इन् लम्बी दूरीओं से डर लगता है
कभी होते थे इतना पास कि छोटा भाई तंग करता था
या फिर वो बड़ा जो सदा चिड़ाता, मुझसे सदा ही लड़ता था
एक बहन भी थी प्यारी सी, आज सब वो जाने कहा है,
वो लड़ना झगड़ना वो फिर यूँ हि मिलना वो प्यार वो बचपन
वो सब जाने कहा है
उड़ गए पंछी सब, अब उस मकान के
अब वहां कोई नहीं लड़ता है
जाते हैं वहाँ त्योहारों में मेहमान बन कर
पर वहाँ कोई नहीं रहता है
इस बार सुना है एक पड़ोसी से
कि शायद एक चिड़िया ने वहाँ एक नया घोसला बनाया है
मुझे लगा जैसे मेरा वो बचपन लौट आया है
बचपन में सुनता था माँ से……
पुष्पेश सितम्बर १३ २००८
कि चिड़िया के बच्चे बड़े हो कर उड़ जाते हैं
लौट के उस आशियाने में, वो वापस नहीं आते हैं
आज जब बड़ी बिल्डिंग कि छोटी बालकनी से देखता हूँ
कभी कभी वो छोटा घर बहुत याद आता है
चहचहाते तो नहीं हम भाई बहन लड़ते थे जिसमे
वो छोटा सा आशियाँ याद आता है
कभी शिकायत थी नजदीकियों से,
आज इन् लम्बी दूरीओं से डर लगता है
कभी होते थे इतना पास कि छोटा भाई तंग करता था
या फिर वो बड़ा जो सदा चिड़ाता, मुझसे सदा ही लड़ता था
एक बहन भी थी प्यारी सी, आज सब वो जाने कहा है,
वो लड़ना झगड़ना वो फिर यूँ हि मिलना वो प्यार वो बचपन
वो सब जाने कहा है
उड़ गए पंछी सब, अब उस मकान के
अब वहां कोई नहीं लड़ता है
जाते हैं वहाँ त्योहारों में मेहमान बन कर
पर वहाँ कोई नहीं रहता है
इस बार सुना है एक पड़ोसी से
कि शायद एक चिड़िया ने वहाँ एक नया घोसला बनाया है
मुझे लगा जैसे मेरा वो बचपन लौट आया है
बचपन में सुनता था माँ से……
पुष्पेश सितम्बर १३ २००८
Tuesday, September 2, 2008
yaad
याद क्या है
दिन हैं कुछ बीते हुए
और वो लम्हा जो बीत गया
कुछ हसीं पल थे, और कुछ गम के साये
सब यादों के पुलिंदे में समेट के रखे हैं
कुछ धुंदली याद भी है, मेरी जब मैं भी हँसता था
फिर तुम्हे भुलाने बैठा तो खुद को ही मैं भूल गया
आज जब पुलिंदा यादों का खोलता हूँ तो एक धुन्द्ली सी शकल याद आती है
वो खिलखिलाता बचपन, वो कॉलेज की शरारत और वो एक हँसी याद आती है
खो गयी जो आज के कहकहों में, वो बोलती खामोशी आज इन महफिलों में
भीड़ में भी खुद को तनहा पाता हूँ
हँसता भी हूँ और रोता भी, उन यादों को जब याद किये जाता हूँ
यादें ही हैं अब और उन यादों का पुलिन्दा है
था मैं जो इंसान कभी वो आज उन यादों का एक वाशिंदा है.
दिन हैं कुछ बीते हुए
और वो लम्हा जो बीत गया
कुछ हसीं पल थे, और कुछ गम के साये
सब यादों के पुलिंदे में समेट के रखे हैं
कुछ धुंदली याद भी है, मेरी जब मैं भी हँसता था
फिर तुम्हे भुलाने बैठा तो खुद को ही मैं भूल गया
आज जब पुलिंदा यादों का खोलता हूँ तो एक धुन्द्ली सी शकल याद आती है
वो खिलखिलाता बचपन, वो कॉलेज की शरारत और वो एक हँसी याद आती है
खो गयी जो आज के कहकहों में, वो बोलती खामोशी आज इन महफिलों में
भीड़ में भी खुद को तनहा पाता हूँ
हँसता भी हूँ और रोता भी, उन यादों को जब याद किये जाता हूँ
यादें ही हैं अब और उन यादों का पुलिन्दा है
था मैं जो इंसान कभी वो आज उन यादों का एक वाशिंदा है.
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