आज बैठा महखाने में सबसे गुफ्तगू यार कर रहा था
बहुत हो चला वक़्त क्या भर गए नासूर सवाल यही बार बार कर रहा था
भरी मई जून की दोपहरी हो लू के थपेड़ों मैं ढली बात हो
दिन हो बरसात के या फिर पूस माह की सर्द रात हो
दर्द तो कुछ कम न हुआ रह रह के उठ ही पड़ता है
टीस उभर ही जाती है दर्द उफन ही पड़ता है
साक़ी आ जाम के कुछ मरहम लगता है
फिर एक उम्मीद एक ख्याल कुछ राह दिखाता है
फिर शाम आते आते महखाने मैं जा बैठता है
फिर हर आने जाने वाले शख्स से सवाल वही उभर के बार बार आता है
बहुत बरस बीते काफी वक़्त हो चला क्या भर गए नासूर पूछे जाता है
है इंतज़ार में शायद कि कोई तो आएगा
कोई हमख़याल जो पैमाना साथ लड़ायेगा
वादा है जिसके आने का उसी एक शख्स इंतज़ार में
वादा है जिसके आने का उसी एक शख्स इंतज़ार में
बैठ जाता है अक्सर शाम को महखाने में किसी बार में
हर आने जाने वाले से वही सवाल बार बार करता है
या यूँ कहो हर शख्स में वो इसी बहाने इबादते यार करता है
पुष्पेश पांडेय
30 नवंबर 2021
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