आज के दौर के कन्हैया आजादी का बिगुल बजाते हैं
JNU के रण से ये अपना परचम लहराते हैं
मनुवाद को धताने वाले खुद जातिवाद फैलाते हैं
दलित का रोना ले ये मनुवाद बढ़ाते हैं
उसी मनुव्यवस्था के चलते जब आरक्षण मिले
तो ये कुछ सर्प विषैली जिह्वा लपलपाते हैं
अपना तर्क साधने को ये आतंकियों को गुरु बनाते हैं
ये वो गरीब नहीं जो फैक्ट्री में या घर से दूर मेहनत कर अपना वक़्त बिताते हैं
न ही वो निर्धन जो एक वक़्त भूके रह अपनी माँ को खाना पहुँचाते हैं
ये देश की वो आवाज हैं जो सिर्फ मोदी को गरियाते हैं
चाहे वो किसी दलित की लाश हो या दलित कवच
ये अपना और अपने राजनीतिक गुरुओं का तर्क सधाते हैं
इन्होंने सेना को भी नहीं बक्शा उनके लिए ये फरमाते हैं
नहीं मिला होगा JNU में एडमिशन इसीलिए वह जवान सर कटाते हैं
सर्प ही विषैले नहीं हमारे वहां कई मदारी भी पाये जाते हैं
जहां ऐसे सर्प भिनभिनायें वो बीन लिए दौड़े आते हैं
आखिर आने वाले इलेक्शन के गलियारे में युद्ध भी तो लड़ना है
आगे कोइ हथियार रख एक मसीहा भी तो बनना है
इतने वर्ष तुमने JNU को भोगा, नेता बने, बोलो क्या उपसंहार किया
देश के दलित छोड़ो अपनी छात्रवृत्ति से कितना खुद के परिवार का ही उद्धार किया
आज सुहानुभूति के लिए जिस ३००० रुपये पे काम करने वाली माँ और बीमार पिता का उद्घोषण देते हो
वर्ष मैं कितनी बार उस जीवनदायनी माँ के साक्षात दर्शन कर लेते हो
राजनीति की रोटी सेकने आये हो नेता बनोगे निकल जाओगे
28 तो निकाल चुके और कितने वर्ष लोगे, कि दलित उत्थान के लिए कुछ तो कर जाओगे
JNU जैसी यूनिवर्सिटी जिसमें कई मित्र पढ़े और कई उच्च पदों पे हैं डटे
परन्तु उसकी देखो निहरता आज इतने वर्षों में यह भी न कर सकी
छलावे तो कई देश को दिए परन्तु अम्बेडकर, फुले का रिक्त स्थान न भर सकी। .......
पुष्पेश पाण्डेय
5 मार्च 2016
JNU के रण से ये अपना परचम लहराते हैं
मनुवाद को धताने वाले खुद जातिवाद फैलाते हैं
दलित का रोना ले ये मनुवाद बढ़ाते हैं
उसी मनुव्यवस्था के चलते जब आरक्षण मिले
तो ये कुछ सर्प विषैली जिह्वा लपलपाते हैं
अपना तर्क साधने को ये आतंकियों को गुरु बनाते हैं
ये वो गरीब नहीं जो फैक्ट्री में या घर से दूर मेहनत कर अपना वक़्त बिताते हैं
न ही वो निर्धन जो एक वक़्त भूके रह अपनी माँ को खाना पहुँचाते हैं
ये देश की वो आवाज हैं जो सिर्फ मोदी को गरियाते हैं
चाहे वो किसी दलित की लाश हो या दलित कवच
ये अपना और अपने राजनीतिक गुरुओं का तर्क सधाते हैं
इन्होंने सेना को भी नहीं बक्शा उनके लिए ये फरमाते हैं
नहीं मिला होगा JNU में एडमिशन इसीलिए वह जवान सर कटाते हैं
सर्प ही विषैले नहीं हमारे वहां कई मदारी भी पाये जाते हैं
जहां ऐसे सर्प भिनभिनायें वो बीन लिए दौड़े आते हैं
आखिर आने वाले इलेक्शन के गलियारे में युद्ध भी तो लड़ना है
आगे कोइ हथियार रख एक मसीहा भी तो बनना है
इतने वर्ष तुमने JNU को भोगा, नेता बने, बोलो क्या उपसंहार किया
देश के दलित छोड़ो अपनी छात्रवृत्ति से कितना खुद के परिवार का ही उद्धार किया
आज सुहानुभूति के लिए जिस ३००० रुपये पे काम करने वाली माँ और बीमार पिता का उद्घोषण देते हो
वर्ष मैं कितनी बार उस जीवनदायनी माँ के साक्षात दर्शन कर लेते हो
राजनीति की रोटी सेकने आये हो नेता बनोगे निकल जाओगे
28 तो निकाल चुके और कितने वर्ष लोगे, कि दलित उत्थान के लिए कुछ तो कर जाओगे
JNU जैसी यूनिवर्सिटी जिसमें कई मित्र पढ़े और कई उच्च पदों पे हैं डटे
परन्तु उसकी देखो निहरता आज इतने वर्षों में यह भी न कर सकी
छलावे तो कई देश को दिए परन्तु अम्बेडकर, फुले का रिक्त स्थान न भर सकी। .......
पुष्पेश पाण्डेय
5 मार्च 2016
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