जनम लिया तो
लोगो की आँखों से दिल
में उतारी गयी
कहीं गुड़िया कहीं लक्ष्मी
और कहीं बिटिया
कह के पुकारी
गयी
कुछ घर वो
भी थे जिन्होंने
मुझे मनहूस का
नाम दिया
या मेरी माँ
को वंश न
दे सकने का
ताना सुना दिया
मैं तो घर
की बेटी थी
जहाँ जनम लिया
या ब्याही गयी
उसी घर को
अपना लिया
मानव जीवन की
प्रतिस्पर्धा और
बड़ी तो मैंने
भी हमसफ़र को
अपना हाथ सहारे
के लिए बड़ा
दिया
घर कि चौखट
से बाहर कदम रखा
और गर्व से
सर ऊँचा कर
विदेशों मैं भी
नारी शक्ति का
परचम लहरा दिया
पर ये व्यवस्था
उन पुरुष प्रधान
पंचों से
न सही गयी
और समाज के
शिष्टाचार बंधन
तोड़ने के लिए
मैं ही दोषी
कही गयी
यदि रात बेटा
घर न आये
तो माँ का
सीना चौड़ा हो
जाता है
सबसे कहती बीटा
जी तोड़ मेहनत कर
कमाई घर लाता
है
परन्तु यदि यही
मेहनत लड़की करे
तो ये कहाँ
समाज को भाता
है
आज भी स्त्री
का चरित्र उसके
कपड़ो की लम्बाई
से आंका जाता
है
इस पर भी
मैं न रुकी
तो पौरुष अभिमान
में मद तथाकथित
पुरुषों ने मेरा
चीर ही हरा
दिया
उन नपुंसक पुरुषों ने
सोचा कि बाहुबल
कि जीत ने
मेरी चीख को
दबा दिया
पर मैं वापस
आउंगी दोगुनी ताकत
से
मिटाऊंगी तुम्हारा दुराभिमानी अस्तित्व
इस संसार रुपी
वृक्ष कि शाखों
से
मैं प्रकृति हूँ, मैं
ही सृजन तो
संहार भी मैं
ही हूँ
इस संपूर्ण सृष्टीधारा का आधार
भी मैं ही
हूँ
जान लो कि
हर घर में मैं ही माँ, मैं ही
पुत्री, पुत्रवधू, शिष्टाचार, व्यवहार
मैं ही हूँ
मत समझो मुझे
बेबस यह चीख
यदि बदले तो
चंडी का अवतार
मैं ही हूँ
असुर वध की
थी जो गर्जना
उस चंडी के
अट्टाहास मैं
छुपा हाहाकार मैं
ही हूँ
यदि फिर भी
सोचते रहे कि
तुम्हरी जीत ने
मेरी चीख को
दबा दिया
ये न हो
कि सृजन नहीं
संहार का लेना
पड़े रूप और
फिर किसी चंडी
कालका ने दुराभिमानी
अस्तित्व को ही
संसार से मिटा
दियापुष्पेश पाण्डेय
नवंबर 16, 2013