Saturday, September 15, 2012

पथ प्रदर्शक


याद है मुझको वो जब मैंने

ऊँगली पकड़ तुम्हारी था चलना सीखा

मैं लड़खड़ाता हँसता गाता

अपनी गलतियों पे मुस्काता

जब जब ज्यों ज्यों गिरने को होता

तुम उठाते हाथ बढ़ाते

मुझको थामे गले से लगाते

कभी भी मुझको गिरने देते

हाथ थाम तुम मुझे थाम लेते

हाथ पकड़ कर मुझे समझा कर

आगे चलने मुझको तुम कहते

वो जो ऊँगली पकड़ी थी मैंने

आज भी वो ही पकड़ी हुई है

जीवन की इस आपाधापी में

जब जब ज्यों ज्यों मैं गिरने को होता

तुम हो आते मुझे समझाते

जीवन पथ की राह दिखाते

आज भी जब जीवन राह की उलझन में मन ये मेरा उलझ सा जाता

नहीं सूझती राह कोई जो मन ही मन यूँ घबराता

आँख मूंद कर पीछे मुड़ता, तुम्हें खड़ा मुस्काता पाता

हाथ पकड़ मुझे चलाने का करते हो तुम प्रयास अथक

तुमको नमन हे मेरे पिता, शत शत नमन हे पथ प्रदर्शक

पुष्पेश पाण्डेय

16 Sept 2012

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