जब रात के आगोश में सन्नाटा अक्सर सो जाता है
उठती है कसक सी एक आहट की, जैसे तुम आये हो
वो रेशमी चांदनी बिखेरे यादें तब घर कर जाती हैं
बंद आँखों से जागते हुए ख्वाब में अक्सर मुस्कुराता हूँ
वो खोया वक़्त जो पीछे कहीं छूट गया
फिर उस रात की चांदनी में लिपटा चारों ओर बिखर जाता है
यूँ ही ख्वाब में जागते हुए अक्सर रात गुजर जाती है
और फिर एक नयी सुबह फिर मिलने का वादा दे चली आती है
उठकर बैठता हूँ सोचता हूँ अक्सर आँख मलता कि ख्वाब है क्या ये
या ख्वाब था वो, जो मैंने देखा था तब
जब रात के आगोश में सन्नाटा अक्सर सो जाता है
पुष्पेश May 12, 2011
3 comments:
Waw Pushpesh, I never knew this talent of yours.
--Mrinal
shukriya
Super like it !! keep it up.
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