यहां आधी जिंदगी बिता के भी खुद को ना समझ में आ रहे हैं
और लोग चांद घड़ी बिता ना जाने क्या क्या समझे जा रहे हैं
जिससे जितना मिला हूं मैं, वो उतना ही जान पाया मुझे
मिला तो अभी खुद से भी पूरा नहीं तो क्या वो जान पाया मुझे
तुम जो जैसा सोच रहे हो ना, मैं वैसा भी तो नहीं
खैर छोड़ो तुम्हारी सोच का कोई वास्ता भी तो नहीं
अभी तलक तो गुरूर है कि अब तक तो अपनी मर्जी से चला हूँ मैं
जो जाना तो समझा कि थी अपनी तो वो मर्जी भी नहीं, तो आखिर क्या बला हूँ मैं
अजीब ताना बाना है जितना सुलझाएं उतना उलझ जाती है
दूसरो की छोड़ो जनाब ये जिंदगी है खुद की भी कहां समझ आती है
तुम जो जैसे थे क्या आज भी वैसे हो, तुम जो जैसे थे क्या आज भी वैसे हो
और वो अगर तुम नहीं थे तो आज तुम जो जैसे हो वो तुम, तुम कैसे हो
पुष्पेश पांडेय
29 सितम्बर 2024