आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं
एक ख्वाब को सहेज के बंद करने लॉकर में गया
खोला जो दरवाजा लॉकर का तो कुछ ख्वाब गिर पड़े
उन्हें सँभालने बैठा तो एक सिलसिला सा शुरू हो गया
जीवन की इस आपाधापी में कई लम्हे जो गुजर गए
वो सामने बिखरे पड़े थे, गुजरे लम्हे जो गुजारे ही नहीं कभी
सिर्फ संजों के रख दिया था कि फिर कभी जियेंगे
वो ख्वाब जो किसी जरूरत की नियामत चढ़ गए
कभी अपनी तो अक्सर चाहने वालों की चाह में आगे बढ़ गए
हम उन्हें लॉकर में सहेज के संभाल के बंद करते आये
सोचते थे कभी फुर्सत से इन्हे पढ़ेंगे इन्हे उठाएंगे
एक एक कर फिर वही लम्हा जियेंगे और मुस्कुरायेंगे
आज वो तमाम ख्वाब और लम्हे सवाल पूछते हैं जिन्हे सहेज के रखा था
की वो लम्हा कब आएगा, कब इस कल की दौड़ को छोड़ तू आज पे आएगा
तू आज इस वक़्त पे मुस्कुराएगा, क्यू नहीं इसी पल से तू आज को अपनाएगा
सोच ही रहा था कि फ़ोन पे अगली मीटिंग का रिमाइंडर मुस्कुरा दिया
हमने फिर से उन ख्वाब और लम्हो को पुलिंदा उठाया और सहेज के लॉकर में सजा दिया
आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं
पुष्पेश पांडेय
एक ख्वाब को सहेज के बंद करने लॉकर में गया
खोला जो दरवाजा लॉकर का तो कुछ ख्वाब गिर पड़े
उन्हें सँभालने बैठा तो एक सिलसिला सा शुरू हो गया
जीवन की इस आपाधापी में कई लम्हे जो गुजर गए
वो सामने बिखरे पड़े थे, गुजरे लम्हे जो गुजारे ही नहीं कभी
सिर्फ संजों के रख दिया था कि फिर कभी जियेंगे
वो ख्वाब जो किसी जरूरत की नियामत चढ़ गए
कभी अपनी तो अक्सर चाहने वालों की चाह में आगे बढ़ गए
हम उन्हें लॉकर में सहेज के संभाल के बंद करते आये
सोचते थे कभी फुर्सत से इन्हे पढ़ेंगे इन्हे उठाएंगे
एक एक कर फिर वही लम्हा जियेंगे और मुस्कुरायेंगे
आज वो तमाम ख्वाब और लम्हे सवाल पूछते हैं जिन्हे सहेज के रखा था
की वो लम्हा कब आएगा, कब इस कल की दौड़ को छोड़ तू आज पे आएगा
तू आज इस वक़्त पे मुस्कुराएगा, क्यू नहीं इसी पल से तू आज को अपनाएगा
सोच ही रहा था कि फ़ोन पे अगली मीटिंग का रिमाइंडर मुस्कुरा दिया
हमने फिर से उन ख्वाब और लम्हो को पुलिंदा उठाया और सहेज के लॉकर में सजा दिया
आज जब बिजी हुआ इस लॉकडाउन के दौरान मैं
पुष्पेश पांडेय