Tuesday, October 31, 2017

खाली हाथ कहाँ रोते हुए आये थे ज़माने में .........


खाली हाथ कहाँ रोते हुए आये थे ज़माने में
दोनों हथेलियों में मुठ्ठी बंद उम्र बटोरी थी खुदा से
दौलते ख्वाइश जमा करते हमें देख खुदा यूँ ही मुस्कराता रहा
और वो बेवफा कम्बख्त उम्र हाथ से यूँ ही फिसलती रही


पुष्पेश पान्डेय
31 अक्टूबर 2017