कुछ अजीब ही है ये साज् वक़्त का
रुकता नहीं थकता नहीं, जब देखो बेवक़्त बजा करता है
कहीं इसमें सुरों का श्रृंगार है
कहीं विरह की टीस, तो कहीं खिलती किलकारियों की आवाज है
कुछ अजीब ही है ये साज् वक़्त का......
कभी यूँही सुनने बैठो तो दिल को छूने वाली आवाजें सुनाई दे जाती हैं
कभी कोई सोच हंसा देती है तो कहीं कोई याद रुला देती है
हर नज़्म इसकी बीते पलों की आँख नम करा देती है
आज फिर देखो एक नज़म पुरानी सुनने फिर से बैठ गया
प्यार भी है, गुस्सा भी, थोड़ी हंसी तो कुछ आंसू भी
कुछ अजीब ही है ये साज् वक़्त का
रुकता नहीं थकता नहीं, जब देखो बेवक़्त बजा करता है
पुष्पेश पाण्डेय
24 जुलाई 2016