लगता है कल की ही बात थी , देखा तो एक बरस होने को आया
जीवन की आपा धापी मैं कुछ यूँ उलझा
काफी समय से लम्हा चुराकर कुछ लिख न पाया
सोचता हूँ लिखू भी तो क्या लिखूँ
वही मैं हूँ वही तुम हो, हाँ वक़्त कुछ बदल सा गया है
तकाजा गर करूँ वक़्त का तो यूँ तो बरसों हुए
बालों की रंगत जो थोड़ी स्याह थी अब कुछ कुछ बदलने लगी है
शायद मेरे कुछ ज्यादा और तुम्हारे थोड़े कम
वो अलग बात है कि ख्वाबों में या अक्सर सामने जब कभी तुम आते हो
वैसे ही मिलते हो जैसे बरसों पहले तब मिले थे,
वो जो एक रंग जो छाया था पहली मुलाकात में
आज भी वही गुलाबी रंग तुम्हरो गालों पे साफ़ दिखता है
वो शर्म हया का बुरका जो पहना था तब तुमने
जब पकड़ा था हाथ कभी, आज भी शकल पे तुम्हारी वो पोशीदा है
कहाँ कुछ बदला वैसे ही तो दिखते हो
आज भी जब कभी झील किनारे मुस्कुराते मिलते हो
रूहें वही हैं कुछ भी न बदला, हाँ ये तो वक़्त का मिजाज है
अलबत्ता वही बदलता रहता है, पहिया है वक़्त का अनवरत घूमता रहता है
कितना भी चक्कर घूमे पर क्या बदल पायेगा उन लम्हों को कभी
जिन्हे चुरा लिया था हमने उस वक़्त से उस मौके पर तब,
वो तो न बदले हैं न बदल पाएंगे चाह कर भी
सोचता हूँ उम्र के उस पड़ाव को जब होगा पोपला मुह
कमर टेढ़ी और ये सफ़ेद बाल भी साथ छोड़ जायेंगे
हम जैसे दीवाने क्या मुस्कुराते इस जग यूँ ही पाये जायेंगे
काफी वक़्त हुआ या कहूँ कि बरस होने को आया
काफी समय से लम्हा चुराकर कुछ लिख न पाया……..
पुष्पेश पाण्डेय
8 फ़रवरी 2016
जीवन की आपा धापी मैं कुछ यूँ उलझा
काफी समय से लम्हा चुराकर कुछ लिख न पाया
सोचता हूँ लिखू भी तो क्या लिखूँ
वही मैं हूँ वही तुम हो, हाँ वक़्त कुछ बदल सा गया है
तकाजा गर करूँ वक़्त का तो यूँ तो बरसों हुए
बालों की रंगत जो थोड़ी स्याह थी अब कुछ कुछ बदलने लगी है
शायद मेरे कुछ ज्यादा और तुम्हारे थोड़े कम
वो अलग बात है कि ख्वाबों में या अक्सर सामने जब कभी तुम आते हो
वैसे ही मिलते हो जैसे बरसों पहले तब मिले थे,
वो जो एक रंग जो छाया था पहली मुलाकात में
आज भी वही गुलाबी रंग तुम्हरो गालों पे साफ़ दिखता है
वो शर्म हया का बुरका जो पहना था तब तुमने
जब पकड़ा था हाथ कभी, आज भी शकल पे तुम्हारी वो पोशीदा है
कहाँ कुछ बदला वैसे ही तो दिखते हो
आज भी जब कभी झील किनारे मुस्कुराते मिलते हो
रूहें वही हैं कुछ भी न बदला, हाँ ये तो वक़्त का मिजाज है
अलबत्ता वही बदलता रहता है, पहिया है वक़्त का अनवरत घूमता रहता है
कितना भी चक्कर घूमे पर क्या बदल पायेगा उन लम्हों को कभी
जिन्हे चुरा लिया था हमने उस वक़्त से उस मौके पर तब,
वो तो न बदले हैं न बदल पाएंगे चाह कर भी
सोचता हूँ उम्र के उस पड़ाव को जब होगा पोपला मुह
कमर टेढ़ी और ये सफ़ेद बाल भी साथ छोड़ जायेंगे
हम जैसे दीवाने क्या मुस्कुराते इस जग यूँ ही पाये जायेंगे
काफी वक़्त हुआ या कहूँ कि बरस होने को आया
काफी समय से लम्हा चुराकर कुछ लिख न पाया……..
पुष्पेश पाण्डेय
8 फ़रवरी 2016