बैठे थे यूँ ही हाथों में हाथ लिए, यादों की किश्ती थामे घूम रहे रहे थे जब बागों में
एकाएक उसने बोला मुझसे इक दिन, तुम्हे तो सब याद है न, सब पता रखते हो
तो बूझो जरा और एक बात बताओ भला मुझको, के ये ख़ुशी के आसूं क्या होते हैं
मैंने कहा: सवाल तो दुरुस्त है, पर इसका जवाब भी एक सवाल ही तो है
अच्छा बताओ, कि क्या कभी अकेले में खुद को मुस्कुराते देखा है
या देखा है क्या कभी खुद को, उन यादों का ताना बाना बुनते
पाया है क्या खुद को कभी अकेले, पुराने गुज़रे वक़्त से खुद ही बतियाते
जिया है क्या कभी कोई हँसता गुदगुदाता लम्हा, यूँ ही अकेले में खुद ही मुस्कुराते
सोचा है क्या वो सुनाया था जो इक पुराना लतीफा कभी
जो तुम्हें अक्सर ही हँसा देता था या यूँ कहो के आज भी हँसा देता है
पढ़ा है यादों में कभी आज भी वो ctrl +del किया हुआ खत जो आज भी एक कमसिन हसीं दे जाता है
कभी कोई सिनेमा, दोस्त, यार या कोई रिश्तेदार किसी हरकत मैं देखा है किसी को सामने खड़े पाते
आँख बड़ी कर उसने अचरज से कहा हाँ तो, ये तो अकेले अक्सर ही होता है
मैं ही क्या जब भी कोई अकेले बैठा, टटोलता है बीते लम्हों को या जब कभी परवान जिंदगी का कोई चढ़ता है
ऐसा ही होता है, मेरे ही नहीं सबके ही साथ भला इसमें जवाब क्या है
मैंने कहा: जब अगली बार मुस्कुराओ अकेले बैठे ,तो आँख बंद कर एक साँस लेना
उस जाती हुई साँस के संग आँखों मैं एक नमी सी जो पाओगे, जवाब इस सवाल का खुदबखुद समझ जाओगे
बैठे थे यूँ ही हाथों में हाथ लिए, यादों की किश्ती थामे घूम रहे रहे थे जब बागों में.......................
पुष्पेश पाण्डेय
फ़रवरी 8, 2015