वो गली सूनी पड़ी है अब उस मकान में कोई नहीं रहता
जाता हूँ यूँ
ही वहाँ अक्सर,
उस सूने से
गलियारे में
मामू की चाट
अब भी मिलती
है, वहाँ लोग
जमा होते हैं
सुनते हैं कि
मामू का वो फीका
डोसा, लोगों को
आज भी नमकीन
लगता है
कुछ लोग अक्सर
कहते हैं मुझसे
कि जिस गली
को मैं सूना
कहता हूँ
वहाँ अक्सर वही पुराना
चहल पहल का
मौहौल रहता है
जाने क्यूँ दिखता नहीं
कोई वहाँ, कोई
शोर सुनता नहीं
मुझे
गुजरता हूँ जब भी कभी
उस
गली से, उस
पुराने मकान के सामने
अब कोई शख़स
उस मकानकी मुडेर
पे खड़ा इंतज़ार
नहीं करता
उस एक मुस्कराहट
से, रंग जो
अक्सर वहाँ फैला
करते थे
अब उस सन्नाटे
स्याह अँधेरे में
कुछ नहीं दिखता
छत पे अक्सर
जो कहकहे हम्रारे
उस गली में
गूंजा करते थे
उन क़हक़हों की चहल
पहल की जगह
एक सन्नाटा सा
पसरा है
उस मकानकी पुरानी दीवारों
पे वक़्त की
सीलन सी लग
गयी है जैसे
या यूँ कहो
कि इंतज़ार में
वो मकान भी अक्सर
रो दिया करता है
वो गली सूनी
पड़ी है अब
उस मकान में कोई
नहीं रहता......पुष्पेश पाण्डेय
Jan 11, 2014