खता क्या थी उस कैफ की
इज़हारे मुहब्बत ही तो किया था
दुनिया ने जो यूं मारे पत्थर
ऐसा क्या उसने गुनाह किया था
अजब दस्तूर है दुनिया का
लुटवा दी जिन तमाशबीनों ने अस्मतें
जाने कितनी जानें गयी जिंदगियां फ़ना हुईं
कितनो ने खोया बचपन जिनकी वजह से
आज वो ही इस वतन के सरपरस्त तलबगार बने हैं
चड बैठे हैं तानाशाह बन कर
आज हमारे मसलों में मददगार बने हैं
किससे शिकायत करे किससे दोस्ती चाहे
ये गलतियाँ भी हमारी तो नहीं
किसने बनाया खुदा फैसला करने को हमारी किस्मत का
किसने इन्हें ताजो तख्त से नवाजा
भूल गए हम वो होली का रंग वो ईद की सिवईयां
वो मुहर्रम का जुलुस
सब साथ शरीक होते थे मिल बाँट के मनाते थे
सुख हो या दुःख हर लम्हा साथ बिताते थे
फिर कुछ हिन्दू का धरम बटा
किसी मुस्लिम ने चाँद को हथिया लिया
ऊपर वाले ने तो कुछ नहीं कहा सुना
बाटने वाले ने माँ का कलेजा ही बाट लिया
बचपन में जिसे सब अम्मी कहते थे बड़े चाव से
आज वो एक मुस्लिम दुश्मन की माँ हो गयी
और जो माँ हर घर की शान थी
वो काफिर खातून के नाम से नवाजी गयी
वो जहा थे वही हैं उनका झगडा आज भी उस कुर्सी का है
भाई भाई जो साथ में खाते थे एक थाली में, बस वो इंसान बदल गया है
न तो उसका अल्लाह बदला न मेरा भगवान्, बस वो हिन्दू वो मुस्लमान बदल गया है
पुष्पेश पाण्डेय, अप्रैल 27